Tuesday, December 28, 2010

शिक्षा का सही अर्थ

आदरणीय अब्दुल कलम पूर्व राष्ट्रपति द्वारा-

शिक्षा से मानव का व्यक्तित्व संपूर्ण, विनम्र और संसार के लिए उपयोगी बनता है। सही शिक्षा से मानवीय गरिमा, स्वाभिमान और विश्व बंधुत्व में बढ़ोतरी होती है। अंतत: शिक्षा का उद्देश्य है-सत्य की खोज। इस खोज का केंद्र अध्यापक होता है, जो अपने विद्यार्थियों को शिक्षा के माध्यम से जीवन में और व्यवहार में सच्चाई की शिक्षा देता है। छात्रों को जो भी कठिनाई होती है, जो भी जिज्ञासा होती है, जो वे जानता चाहते हैं, उन सबके लिए वे अध्यापक पर ही निर्भर रहते हैं। यदि शिक्षक के मार्गदर्शन में प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा को उसके वास्तविक अर्थ में ग्रहण कर मानवीय गतिविधि के प्रत्येक क्षेत्र में उसका प्रसार करता है तो मौजूदा 21वीं सदी में दुनिया काफी सुंदर हो जाएगी। आज की युवा पीढ़ी ऐसी शिक्षा प्रणाली चाहती है जो उसके खोजी और सृजनशील मन को सबल बनाने के साथ-साथ उसके सामने चुनौती प्रस्तुत करे। देश का भविष्य उन पर टिका हुआ है। वे वर्तमान में शिक्षा प्रणाली के संबंध में सोच-विचार करना चाहते हैं। एक अच्छी शिक्षा प्रणाली में ऐसी क्षमता होनी चाहिए जो छात्रों की ज्ञान प्राप्ति की तीव्र जिज्ञासा को शांत कर सके। शैक्षणिक संस्थानों को ऐसे पाठ्यक्रम बनाने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए जो विकसित भारत की सामाजिक और प्रौद्योगिकी संबंधी आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील हाें। वर्तमान पाठ्यक्रम में विकास कार्यो की गतिविधियों को अनिवार्यत: स्थान दिया जाना चाहिए ताकि ज्ञान समाज की भावी पीढ़ी पूरी तरह से सामाजिक परिवर्तन के सभी पहलुओं के अनुकूल हो सके।
विज्ञान मानवता को ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है। तर्क-आधारित विज्ञान समाज की पूंजी है। हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, राजनीति, नीति-निर्माण, धर्मशास्त्र, न्याय जैसे किसी क्षेत्र में कार्यरत रहें, हमें आम लोगों की सेवा करनी ही होगी, क्योंकि ज्ञान और सभी प्रकार के कार्यो का मूलमंत्र मानव-कल्याण है। विज्ञान के अंतर्गत जिज्ञासा प्रकट की जाती है और प्रकृति के नियमों में कठिन परिश्रम और अनुसंधान से उन जिज्ञासाओं का निदान ढूंढा जाता है। विज्ञान एक रोमांचकारी विषय है और एक वैज्ञानिक के लिए समूचे जीवन का मिशन। विज्ञान में निपुण होने के लिए गणित का ज्ञान आवश्यक है। गणित और विज्ञान के संयोग से एक दीप्ति पैदा होती है। जरूरी यह होता है कि सिद्धांत को सामने रख कर प्रयोग किया जाए। जो प्रश्न छात्रों के मन में विज्ञासा उन्पन्न करते हैं और यदि वे विज्ञान से जुडे़ हैं तो छात्र विज्ञान की ओर आकर्षित होते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी में प्रगति से दुनिया सिमट गई है। दुनिया की वास्तविक जटिल समस्याओं के निदान के लिए दुनिया के वैज्ञानिकों के बीच तालमेल होना अनिवार्य है। प्राचीन काल में भारत को शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान और दर्शन का गढ़ माना जाता था, किंतु कुछ दशकों से भारत के वैज्ञानिकों का रुख पूर्व से पश्चिम की ओर हो गया है। देर से ही सही, पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक फिर भारत की ओर आकृष्ट होने लगे हैं। हमें भारत को विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में श्रेष्ठता का केंद्र बनाने के लिए और श्रम करना होगा। भारत 2020 तक अपने-आपको एक विकसित राष्ट्र बनाने के मिशन में जुटा हुआ है। जिस संसाधन के बल पर यह मकसद हासिल होगा वे हैं पच्चीस वर्ष से कम उम्र के देश के देश के 54 करोड़ नौजवान।
बच्चे और युवक किसी देश के भविष्य की तस्वीर होते हैं। हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण, सशक्त और संसाधनों से भरा हुआ वर्ग युवकों का है जिनमें आसमान की बुलंदियों का छू लेने की आकांक्षा धधक रही है। यदि उनकी ऊर्जा को सही दिशा दी जाए तो उससे ऐसी गतिशीलता पैदा होगी जो राष्ट्र को विकास के तेज वाहन में दौड़ा देगी। युवकों को अपनी योजना और विकास प्रक्रिया का केंद्र बिंदु मानते हुए हमें इस बहुमूल्य मानव संसाधन की देखरेख करने की आवश्यकता है। मैंने भारतीय और विदेशी बच्चों से बातचीत के दौरान देखा कि उनमें एक जैसी आकांक्षा है और वह है- शांतिपूर्ण, खुशहाल, सुरक्षित देश में जिंदगी जीना। सृजनशीलता मानव-चिंतन का आधार है। चाहे कितनी भी गति और स्मृति वाले कंप्यूटर बन जाएं, मानव चिंतन का स्थान हमेशा सबसे ऊपर रहेगा। सृजनशीलता जैसा गुण इंसान में सदा मौजूद रहेगा और प्रौद्योगिकी से प्राप्त होने वाली गणना क्षमता जैसा मजबूत हथियार इंसान के पास होगा। उसका उपयोग वह इस दुनिया को और खूबसूरत बनाने की अपनी योजना को साकार करने में करेगा।

ई-शिक्षा का क्या?

ई-शिक्षा का अर्थ इन्टरनेट से सूचना प्रदान करने से कहीं ज्यादा है। ई-शिक्षा उन सभी चीज़ों तथा, प्रक्रिया को अपने अन्दर समाहित करती है जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का उपयोग व्यवसायिक शिक्षा को सुचारू रूप से प्रस्तुत करते हैं। ई-शिक्षा शब्द का प्रयोग एक ऐसे ढांचे के रूप में किया जाता है जो लगभग सभी इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों (इन्टरनेट, इंट्रानेट, एक्सट्रानेट, कृत्रिम उपग्रह प्रसारण, ऑडियो/विडियो, इंटरैक्टिव टेलीविजन, सी-डी इत्यादि) को पेशेवर शिक्षा को विद्यार्थीयों तक बड़े ही रोचक तरीके से पहुंचाता है| ई-शिक्षा शब्द का प्रयोग कई जगहों पर किया जाता है जैसे ऑनलाइन शिक्षा, कंप्यूटर आधारित शिक्षा, सूचना जाल आधारित शिक्षा, सूचना जाल संसाधन आधारित शिक्षा, नेटवर्क सहयोगी शिक्षा, कंप्यूटर समर्थित सहयोगी शिक्षा। ई-शिक्षा हमारी कक्षा व्यवस्था का ही विकसित रूप है, सिर्फ़ अन्तर यही है की यहाँ पर शिक्षा को विद्यार्थी की सुविधा के अनुसार बनाया जा रहा है, वह अपने द्वारा निश्चित किए गए समय पर, अपनी गति से सीख सकता है।

ई-शिक्षा के जरिये कोई भी विद्यार्थी, शिक्षक तथा अन्य सूचना तथा विचारों का आदान प्रदान करते हुए एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। यदि किसी विद्यालय के नजरिये से देखा जाए तो सभी के पास ज्यादा अवसर रहते हैं एक दूसरे से जुड़े रहने के, समझने के जिनके जरिये निम्नलिखित को काफी हद तक सुधारा जा सकता है:-
१ विद्यार्थी की क्षमता, आवश्यकता तथा उसका लक्ष्य
२ शिक्षक की क्षमता, आवश्यकता, तथा उसका लक्ष्य
३ पाठ की गुणवत्ता
४ सीखने तथा सिखाने की रूचि
५ तकनीक के माध्यम तथा उनका उपयोग
६ मूल्यांकन तथा प्रतिक्रिया

इस उदाहरण को देखें~~ नीचे दिखाया गया विडियो ई-शिक्षा का ही एक रूप है, जिसमे कंप्यूटर के माध्यम से शिक्षक की आवाज तथा उसकी गतिविधियों को रिकॉर्ड कर के प्रस्तुत किया गया है
|

शिक्षा क्यों और कैसी?

शिक्षा क्या है’ में जीवन से संबंधित युवा मन के पूछे-अनपूछे प्रश्न हैं और जे.कृष्णमूर्ति की दूरदर्शी दृष्टि इन प्रश्नों को मानो भीतर से आलोकित कर देती है पूरा समाधान कर देती है। ये प्रश्न शिक्षा के बारे में हैं, मन के बारे में हैं, जीवन के बारे में हैं, विविध हैं, किन्तु सब एक दूसरे से जुड़े हैं।

"गंगा बस उतनी नहीं है, जो ऊपर-ऊपर हमें नज़र आती है। गंगा तो पूरी की पूरी नदी है, शुरू से आखिर तक, जहां से उद्गम होता है, उस जगह से वहां तक, जहां यह सागर से एक हो जाती है। सिर्फ सतह पर जो पानी दीख रहा है, वही गंगा है, यह सोचना तो नासमझी होगी। ठीक इसी तरह से हमारे होने में भी कई चीजें शामिल हैं, और हमारी ईजादें सूझें हमारे अंदाजे विश्वास, पूजा-पाठ, मंत्र-ये सब के सब तो सतह पर ही हैं। इनकी हमें जाँच-परख करनी होगी, और तब इनसे मुक्त हो जाना होगा-इन सबसे, सिर्फ उन एक या दो विचारों, एक या दो विधि-विधानों से ही नहीं, जिन्हें हम पसंद नहीं करते।"

क्या आप स्वयं से यह नहीं पूछते कि आप क्यों पढ़-लिख रहे हैं ? क्या आप जानते है कि आपको शिक्षा क्यों दी जा रही है और इस तरह की शिक्षा का क्या अर्थ है ? अभी की हमारी समझ में शिक्षा का अर्थ है स्कूल जाना पढ़ना लिखना सीखना, परीक्षाएं पास करना कालेज में जाने लगते हैं। वहाँ फिर से कुछ महीनों या कुछ वर्षों तक कठिन परिश्रम करते हैं, परीक्षाएं पास करते हैं और कोई छोटी-मोटी नौकरी पा जाते हैं, फिर जो कुछ आपने सीखा होता है भूल जाते हैं। क्या इसे ही हम शिक्षा कहते हैं ? क्या आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ ? क्या हम सब यही नहीं कर रहे हैं ?  

लड़कियां बी. ए. एम.ए. जैसी कुछ परीक्षाएं पास कर लेती हैं, विवाह कर लेती हैं, खाना पकाती हैं या कुछ और बन जाती हैं, बच्चों को जन्म देती हैं और इस तरह से अनेक वर्षो में पाई जाने वाली शिक्षा पूर्णतः व्यर्थ हो जाती है हां, यह जरूर जान जाती हैं कि अंग्रेजी कैसे बोली जाती है, वे थोड़ी-बहुत चतुर, सलीकेदार, सुव्यवस्थित हो जाती हैं और अधिक साफ सुथरी रहने लगती हैं, पर बस उतना ही होता है, है न ? किसी तरह लड़के कोई तकनीकी काम पा जाते हैं, क्लर्क बन जाते हैं या किसी तरह शासकीय सेवा में लग जाते है इसके साथ ही सब समाप्त हो जाता है। ऐसा ही होता है न ? 

आप देख सकते हैं कि जिसे आप जीना कहते हैं, वह नौकरी पा लेने बच्चे पैदा करने, परिवार का पालन-पोषण करने, समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं को पढ़ने, बढ़–चढ कर बातें कर सकने और कुशलतापूर्वक वाद-विवाद कर सकने तक सीमित होता है। इसे ही हम शिक्षा कहते हैं-है न ऐसा ? क्या आपने कभी अपने माता-पिता और बडे लोगों को ध्यान से देखा है ? उन्होंने भी परीक्षाएं पास की हैं, वे भी नौकरियां करते हैं और पढ़ना-लिखना जानते हैं। क्या शिक्षा का कुल अभिप्राय इतना है ?
इल्म का मामला कहीं अधिक व्यापक है। इसका इतना ही नहीं कि दुनिया में यह आपको कोई नौकरी दिलाने में सहायक हो, बल्कि यह भी है कि इस दुनिया का सामना करने में आपकी मदद करे। आप जानते हैं कि संसार क्या है। इस संसार में चारों तरफ प्रतिस्पर्धा है। आपको मालूम ही है कि प्रतिस्पर्धा का अर्ध क्या हैः प्रत्येक व्यक्ति केवल अपना ही लाभ देख रहा है, अपने लिए सबसे बढ़िया चीज हथियाने के लिए संघर्षरत है और उसे पाने के लिए वह दूसरे सभी लोगों को एक ओर धकेल देता है। इस दुनियाँ में युद्ध हैं, वर्ग-विभाजन है और आपसी लड़ाई-झगड़े हैं।  

अतः शिक्षा का अर्थ क्या यह नहीं है कि इन सभी समस्याओं का सामना करने के लिए वह आपको समर्थ बनाएं। यह आवश्यक है कि इन सभी समस्याओं का ठीक ढंग से सामना करने के लिए आपको शिक्षित किया जाए। यही शिक्षा है कि न मात्र कुछ परीक्षाएं पास कर लेना कुछ बेहुदा विषयों का-जिनमें आपकी रुचि बिलकुल नहीं है, उसका अध्ययन कर लेना। सम्यक शिक्षा वही है जो विद्यार्थी की इस जीवन का सामना करने में मदद करे, ताकि वह जीवन को समझ सके, उससे हार न मान ले उसके बोझ से दब न जाए, जैसा कि हममें से अधिकांश लोगों के साथ होता है। लोग, विचार, देश, जलवायु, भोजन, लोकमत, यह सभी कुछ लगातार आपको उस खास दिशा में ढकेल रहे हैं, जिसमें कि समाज आपको देखना चाहता है। आपकी शिक्षा ऐसी हो कि वह आपको इस दबाव को समझने के योग्य बनाएं इसे उचित ठहराने की बजाए आप इसे समझें और इससे बाहर निकलें जिससे कि एक व्यक्ति होने के नाते, एक मनुष्य होने के नाते, आप आगे बढ़कर कुछ नया करने में सक्षम हो सकें और केवल परंपरागत ढंग से ही विचार करते न रह जाएं। यही वास्तविक शिक्षा है। 

आप जानते है कि हममें से अधिकांश के लिए शिक्षा का अर्थ यह सीखना है कि हम क्या सोचें। आपका समाज आपके माता-पिता, आपका पड़ोसी, आपकी किताब, आपके शिक्षक ये सभी आपको बताते हैं कि आपको क्या सोचना चाहिए ‘क्या सोचना चाहिए’ वाली यांत्रिक प्रणाली को हम शिक्षा कहते हैं और ऐसी शिक्षा आपको केवल यंत्रवत, संवेदनशून्य मतिमंद और असृजनशील बना देती है। किंतु यदि आप यह जानते हैं कि ‘कैसे सोचना चाहिए’-न कि ‘क्या सोचना चाहिए’- तब आप यांन्त्रिक परंपरावादी नहीं होंगे बल्कि जीवंत जीवन मानव होंगे; तब आप महान कांन्त्रिकारी होंगे-अच्छी नौकरी पाने या किसी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए लोगों की हत्या करने जैसे मूर्खतापूर्ण कार्य करने के अर्थ में। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। लेकिन जब हम विद्यालय में होते हैं तो इन चीज़ों की ओर कभी ध्यान नहीं देते। शिक्षक स्वयं इसे जानते !

वे तो केवल आपको यही सिखाते हैं कि क्या पढ़ना चाहिए, कैसे पढ़ना चाहिए, वे आपकी अंग्रेजी या गणित सुधारने में व्यस्त रहते हैं। उन्हें तो इन्हीं सब चीजों की चिन्ता रहती है, और फिर पाँच या दस वर्षों के बाद आपको उस जीवन में धकेल दिया जाता है जिसके बारे में आपको कुछ पता नहीं होता है। इन सब चीज़ों के बारे में आपको किसी ने कुछ नहीं बताया है, या बताया भी है तो किसी दिशा में आपको धकेलने के लिए जिसका परिणाम होता है कि आप समाजवादी, कांग्रेसी या कुछ और हो जाते हैं परंतु वे आपको यह नहीं सिखाते, न इस बारे में आपका सहयोग करते हैं कि जीवन की इन समस्याओं को कैसे सोचा-समझा जाए; और हाँ, कुछ देर के लिए इस पर चर्चा कर लेने से काम नहीं चलेगा, बल्कि इन सारे वर्षों के दौरान बराबर इसकी चर्चा हो, यहीं तो शिक्षा है, है न ? क्योंकि इस प्रकार के विद्यालय में हमें यही बस छोटी-मोटी परीक्षाएं पास कर लें बल्कि इसमें भी आपका सहयोग करना हमारा कार्य है कि जब आप इस स्थान को छोड़कर जाएं तो जीवन का सामना कर सकें, आप एक प्रबुद्ध मानव बन सकें न कि मशीनी इंसान, हिंदू, मुसलमान, साम्यवादी या ऐसा ही कुछ और बन जाएं। 

आज के समय में शिक्षा का बहुत महत्व है शिक्षा यदि इन्सान के पास नही तो वह कुछ नही कर सकता सभी के लिए ज़रूरी है की शिक्षा का ज्ञान अवाय्शय ले क्युकी शिक्षा इंसान के लिए उतनी ही महतवपूर्ण है जितना खाना भारत जैसे देश में आज भी लोग बेरोजगार है इस बेरोजगारी की वजह यही है की वेह लोग साक्षर नही है.

यदि हम भारत को विकसित करना चाहते है तो हमे संकल्फ़ लेना होगा की कोई भी शिक्षा के बगेर अधुरा न रह जाए क्युकी शिक्षा वह है जो हर इंसान को रोजगार दिलाएगी और भारत देश को आगे बढाएगी आज हर जगह बेरोजगारी दिखाई देती है तब देखकर ऐसा लगता है की हम कितने पानी में है हमारा देश इतनी तरक्की करने के बावजूद भी बेरोजगारी को ख़तम नही कर पा रहा समझ नही आता कमी क्या है कब हम अपने आप को विकसित पाएंगे कही यह सपना तो नही रह जाएगा

वर्तमान में शिक्षा का चिंतन

शिक्षा का प्रथम उद्देश्य बच्चों को एक परिपक्व इन्सान बनाना होता है, ताकि वो कल्पनाशील,वैचारिक रूप से स्वतन्त्र और देश का भावी कर्णधार बन सकें. किन्तु भारतीय शिक्षा पद्दति अपने इस उद्देश्य मे पूर्ण सफलता नही प्राप्त कर सकी है, कारण…बहुत सारे है. सबसे पहला तो यही कि अंगूठाछाप लोग डिसाइड करते है कि बच्चों को क्या पढना चाहिये, जो कुछ शिक्षाविद है वो अपने दायरे और विचारधाराओं से बन्धे है, और उनसे निकलने या कुछ नया सोचने से डरते है, ऊपर से राजनीतिज्ञों का अपना एजेन्डा होता है, कुल मिलाकर शिक्षा पद्दति की ऐसी तैसी करने के लिये सभी लोग चारो तरफ से आक्रमण कर रहे है, और ऊपर से तुर्रा ये कि ये सभी लोग समझते है कि सिर्फ वे ही शिक्षा का सही मार्गदर्शन कर रहे है. जबकि दरअसल ये ही लोग उसकी मा बहन कर रहे है.मै किसी एक पर दोषारोपण नही करना चाहता, शिक्षा पद्दति की रूपरेखा बनाने वालों को खुद अपने अन्दर झांकना चाहिये और सोचना चाहिये, कि क्या उसमे मूलभूत परिवर्तन की जरूरत है.आज हम रट्टामार छात्र को पैदा कर रहे है, लेकिन वैचारिक रूप से स्वतन्त्र और परिपक्व छात्र नही, क्या यही हमारा एक मात्र उद्देश्य है? आज जब धीरे धीरे सत्ता अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के हाथो मे फिसलती जा रही है, तो हम उनसे क्या क्या आशा रखें. सारी राजनैतिक पार्टियां अपने अपने तरीके से इतिहास को बदलने की कोशिश कर रही है, ये सभी कुछ इतना घटिया लग रहा है कि मेरे पास इनकी भर्तत्सना करने के लिये शब्द नही है,

पहले किसी बच्चे से पूछा जाता था कि बढे होकर तुम क्या बनोगे तो उसका जवाब डाक्टर,इन्जीनियर,पायलट या कुछ और होता था, इसके पीछे पैसा नही होता था, बल्कि देशसेवा और समाज को आगे बढाने का ज़ज्बा होता था, आजकल बच्चा बोलता है कि मै बढा होकर नेता बनना चाहता हूँ, क्योंकि इस पेशे मे ज्यादा पैसा है, क्या शिक्षा सिर्फ जीवन मे पैसे कमाने के लिये की जाती है? क्या हम बच्चों का मार्गदर्शन सही दिशा मे कर रहे है.आजकल शिक्षा के मायने ही बदल गये है, क्योंकि हम लोगो के सोचने का तरीका ही बदल गया है, या बकौल कुछ लोगो के “हम लोग कुछ ज्यादा ही व्यवहारिक और स्वार्थी हो गये है”, हर बच्चा चाहता है कि जल्द से जल्द अपनी पढाई पूरी करे और किसी जगह पर फिट हो जाये, उसने क्या पढा और कितना पढा, उससे इसको मतलब नही है, या जो पढा उसका जीवन मे कितना प्रयोग होगा, उससे भी इसको सारोकार नही है, उसको तो बस अपने शिक्षा के इन्वेस्टमेन्ट के रिटर्न से मतलब है, यानि कि शिक्षा और रोजगार, एक व्यापार हो गया है, पैसा लगाओ और और पैसा पाओ. अब बच्चों को ही क्यों दोष दे, उनके माता पिता भी तो इसी लाइन पर ही सोचते है, कि जल्दी से बच्चा पढ लिख ले तो पैसा कमाने की मशीन की तरह काम करे.क्या यही है शिक्षा का उद्देश्य? यदि यही है तो लानत है ऐसे उद्देश्यों पर.

शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो हमारे जीवन को एक नयी विचारधारा,नया सवेरा देता है, ये हमे एक परिपक्व समाज बनाने मे मदद करता है. यदि शिक्षा के उद्देश्य सही दिशा मे हों तो ये इन्सान को नये नये प्रयोग करने के लिये उत्साहित करते है.शिक्षा और संस्कार साथ साथ चलते है, या कहा जाये तो एक दूसरे के पूरक है.शिक्षा हमे संस्कारों को समझने और बदलती सामाजिक परिस्थियों के अनुरूप उनका अनुसरण करने की समझ देता है. आज शिक्षा जिस मुकाम पर पहुँच चुकी है वहाँ उसमे आमूल परिवर्तन की गुंन्जाइश है, आज हमे मिल बैठकर सोचना चाहिये, कि यदि शिक्षा हमारे उद्देश्यों को पूरा नही करती तो ऐसी शिक्षा का कोई मतलब नही है. आज जब भगुवाधारी अपना ऐजेन्डा चला रहे है, दूसरी तरफ सो काल्ड धर्मनिरपेक्ष वाले अपना कांग्रेसी एजेन्डा और तीसरी तरफ मदरसों द्वारा शिक्षा का इस्लामीकरण किया जा रहा है तो किसी से क्या उम्मीद रखें. आप खुद ही बताइये कि भगुवाकरण,कांग्रेसीकरण और इस्लामीकरण से हम कैसे समाज का निर्माण कर रहे है, हम लोगो को लोगो से दूर कर रहे है. हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर रहे है जो अपने धर्म को श्रेष्ठ और दूसरे धर्मो से गिरा हुआ मानेगा और कभी दूसरे धर्म की बेइज्जती करने से नही चूकेगा. या फिर इस्लामी कट्टरता से बच्चा अपनी जिन्दगी को ही इस्लाम की अमानत समझने मे बिता देगा. क्या यही उद्देश्य है शिक्षा के?
अभी भी समय है, जागो, चेतो और इस बिगड़ते हुए शिक्षा के सिस्टम को बचा लो, वरना कल बहुत देर हो जायेगी.मेरे कुछ सुझाव है, जिन्हे शिक्षाविद चाहें तो अमल मे ला सकते हैः
१. शिक्षा को ना केवल किताबी ज्ञान बल्कि व्यवहारिक शास्त्र के रूप मे प्रदान करना चाहिये.
२. परीक्षा के प्रारूप और शिक्षा के स्वरूप मे आमूल परिवर्तन की गुन्जाइश है.
३. कम्पयूटर शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिये.
४. बच्चों से शिक्षा के एक्ट्ररा लोड को कम कर देना चाहिये.और उनके मानसिक,तार्किक विकास और पर्सनाल्टी डेवलपमेन्ट पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये.
५. शिक्षा के भगुवाकरण,इस्लामीकरण और कांग्रेसीकरण से बचना चाहिये.इतिहास को इतिहास ही रहने दो, पार्टी का लेबल मत लगाओ.
६. शिक्षा के साथ साथ व्यवसायिक ज्ञान भी दिया जाना चाहिये, एडवान्स क्लासेस मे तो यह अनिवार्य होना चाहिये.
७. छात्रों को नये खोजें करने और नये प्रयोग करने उत्साहित करना चाहिये.
८. अंगूठाछाप लोगो को सिर्फ राजनीति तक ही सीमित रखना चाहिये.शिक्षा की सलाहकार समितियों से इन लोगो का पत्ता साफ कर देना चाहिये.
९. भारतीय संस्कृति और संस्कार की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिये.
१०. स्टूडेन्ट एक्सचेन्ज प्रोग्राम को ज्यादा बढावा दिया जाना चाहिये, ताकि छात्रो दूसरे देशों के छात्रो से ज्यादा कुछ सीख सकें.
११. ग्रामीण शिक्षा के स्तर को सुधारा जाना आवश्यक है. इपर अभी बहुत ज्यादा काम किया जाना बाकी है.
१२. सेक्स एजुकेशन अनिवार्य कर दी जानी चहिये.
१३. प्रोढ शिक्षा के लिये स्वयं सेवी संगठनो को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन एवं सहायता दी जानी चाहिये.